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धारावाहिक प्रस्तुति (24 मई 2019), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
मोहनदास करमचंद गांधी

प्रथम खंड : 21. पहला समझौता

इस तरह जेल में हम लगभग 15 दिन रहे होंगे कि बाहर से आनेवाले नए लोग यह समाचार लाने लगे कि सरकार के साथ समझौता करने की कोई बातचीत चल रही है। दो तीन दिन बाद जोहानिसबर्ग के 'ट्रान्‍सवाल लीडर' नामक दैनिक के संपादक श्री आल्‍बर्ट कार्टराइट मुझसे जेल में मिलने आए। उस समय जोहानिसबर्ग से निकलनेवाले सारे दैनिकों का स्‍वामित्‍व सोने की खान के किसी न किसी गोरे मालिक के हाथ में था। उनके विशेष स्‍वार्थ का विषय न हो ऐसे हर एक सार्वजनिक प्रश्‍न पर संपादक अपने स्‍वतंत्र विचार प्रकट कर सकते थे। इन अखबारों के संपादक विद्वान और प्रख्‍यात व्‍यक्तियों में से ही चुने जाते थे। उदाहरण के लिए, 'दि डेली स्‍टार' नामक दैनिक के संपादक एक समय लॉर्ड मिल्‍नर के निजी सचिव रह चुके थे। और बाद में वे 'दि टाइम्‍स' के संपादक श्री बकल का स्‍थान ग्रहण करने के लिए इंग्‍लैंड गए थे। श्री आल्‍बर्ट कार्टराइट सुयोग्‍य होने के साथ ही अत्यंत उदार मन के पुरुष थे। उन्‍होंने अपने अग्रलेखों में भी लगभग हमेशा हिंदुस्‍तानियों का समर्थन किया था। उनके और मेरे बीच गहरी मित्रता हो गई थी और मेरे जेल जाने के बाद वे जनरल स्‍मट्स से मिले थे। जनरल स्‍मट्स ने समझौते की बातचीत के लिए उनकी मध्‍यस्‍थता स्‍वीकार की थी। हिंदुस्‍तानी कौम के नेताओं से भी वे मिल चुके थे। नेताओं ने उन्‍हें एक ही उत्तर दिया : ''कानून की बारीकियों को हम समझ नहीं सकते। यह हो ही नहीं सकता कि गांधी जेल में रहें और हम समझौते की बातचीत करें। हम सरकार के साथ समझौता करना तो चाहते हैं। लेकिन अगर हमारे कौम के लोगों को जेल में बंद रखकर सरकार समझौता करना चाहती हो, तो आपको गांधी से जेल में मिलना चाहिए। वे जो कुछ करेंगे उसे हम स्‍वीकार कर लेंगे।''

इस प्रकार श्री कार्टराइट मुझसे मिलने आए। अपने साथ वे जनरल स्‍मट्स द्वारा तैयार किया हुआ या उनका पसंद किया हुआ समझौते का मसौदा भी लाए थे। वह मसौदा मुझे पसंद नहीं आया। उसकी भाषा अस्‍पष्‍ट थी। फिर भी एक परिवर्तन के साथ मैं स्‍वयं तो उस मसौदे पर हस्‍ताक्षर करने को तैयार था। लेकिन मैंने श्री कार्टराइट से कहा कि बाहर के हिंदुस्‍तानियों की इजाजत होते हुए भी जेल के अपने साथियों का मत लिए बिना मैं समझौते के मसौदे पर हस्‍ताक्षर नहीं कर सकता।

उस मसौदे का आशय इस प्रकार था : हिंदुस्‍तानियों को स्‍वेच्‍छा से अपने परवाने...

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बावन कविताएँ
माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी का रचनात्मक योगदान उसी तरह अमूल्य है जैसे स्वतंत्रता। आज जो हमें अभिव्यक्ति और कर्म की स्वतंत्रता प्राप्त है उसमें उनके बलिपंथी त्याग का योग है। उन्होंने जितनी जिज्ञासाएँ उठाईं, रीतिवाद से मुक्ति के लिए जिस तरह उद्दाम आवेग को शब्द दिए, वह इतिहास में सुरक्षित रहेगा। देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता का ज्वार जब जब उठेगा, सांप्रदायिक एकता के लिए सद्भावना की निष्कलुष लहर जब भी साहित्य में छलकेगी, माखनलाल चतुर्वेदी की कविता प्रेरित करती रहेगी। सामाजिक क्रियोन्मुखता के लिए साहित्य की उपयोगिता की हर घड़ी में उनकी याद होगी।" - कमला प्रसाद

परंपरा
कृपाशंकर चौबे
महावीर प्रसाद द्विवेदी और ‘सरस्वती’

कहानियाँ
स्कंद शुक्ल
पुखराज
होमियोपैथ
गोलोबोलो...लाइजेसन
इन्सुलिन : शी लव्स मी, शी लव्स मी नॉट!
नया अतीत
उभयाचार

नाटक
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असलियत

सिनेमा
विजय शर्मा
बहुमुखी प्रतिभा के धनी मृणाल सेन

आलोचना
आनंद वर्धन
कबीर के विविध आयाम

विमर्श
कुमारी किरण
मध्यकालीन हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श
अनुराधा गुप्ता
कुच्ची का कानून : वंचित अस्मिताओं की यथार्थ अभिव्यक्ति

देशांतर - कहानियाँ
लैंग्स्टन ह्यूज़
थैंक यू, मैम
गाब्रिएल गार्सिया मार्केज
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